तो आज हम बात करते है शनि देव की, देखिये शनि समझना है तो इसके बारे में नेचुरल तरीके से समझिये
शुभ शनि कामभाव पर काबू कर लेगा लेकिन अशुभ हुआ तो कामभाव ही मारेगा
शुक्र गाय है तो शनि भैंस - गाय के बछड़े जब बड़े होते है सबसे पहले माँ को भूलते है लेकिन भैंस का बच्चा अपनी माँ को नहीं भूलता यानी कामदेव उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाता। इसका एक मतलब तो एक यह है के केतु शुक्र का दोस्त है लेकिन शनि का पूरी तरह कण्ट्रोल होता है.
मैरिड लाइफ
सूर्य एक तरह से गर्मी का कारक बनता है, जब कपल में आपस में गर्म स्वभाव आ जाए तब सूर्य का हाथ होता है. लेकिन शनि बली होने पर सूर्य तीव्र गर्मी नहीं दे पाता। ऐसे में स्त्री ग्रह अच्छा फल देते है.
ऐसे ही शुक्र शनि को देखे तो खराब फल और शनि शुक्र को देखे तो शुभ फल देखते है.
शनि देव का नाम आते ही बुरे बुरे ख्याल मन में आते है कई पुराणों में शनि देव को बैलेंस बनाने वाला ग्रह माना गया है. पद्म पुराण में राजा दशरथ और शनि देव के युद्ध के बारे में उल्ल्ख मिलता है जिसमे दशरथ के साथ उनका युद्ध जो हुआ उसमे दशरथ जीते, दशरथ जो दसों इन्द्रियों को जीत चुका हो या ज्योतिष की भाषा में लगन पर जिसका पूरा कण्ट्रोल हो उसका शनि मजबूत ही रहेगा।
अब देखिये शनि मेष राशि में नीच और तुला राशि में उच्च है. यानि दिमाग में धीरे होने से बुरे फल और कामभाव में धीरे होने से शुभ फल अब शनि खराब होगा तो सबसे पहले कामभाव क़ाबू का नहीं होगा और दूसरा उसे पता ही नहीं होगा वो कर क्या रहा है. एक तरह से गायब बुद्धि इसे बोल सकते है.
अब एक अजीब चीज़ देखिये के जब व्यक्ति बहुत ज्यादा एक्साइट होता है तब वायु खींचता है और रोक लेता है जिससे वायु धीरे धीरे जमा होने लगती है जिससे वायु रोग होने लगते है, हालाँकि हमारी आज के समय में जीवन शैली कुछ इस तरह की ही है लेकिन जब हम कोई गलत काम करते है तो ऐसा लाइफस्टाइल बहुत आम हो जाता है जो शनि की देन है. वायु की वजह से लंग्स में प्रॉब्लम या गठिया या एक तरह से समझ लीजिये के वात रोग हो जाए फिर बाकी बीमारियों को बुलाने की जरूरत नहीं वो अपने आप आ जाएँगी। इसलिए लाल किताब खराब शनि को गन्दा इश्क़ कहकर सम्बोधित करती है क्यूंकि ब्रेथ इसमें सबसे ज्यादा प्रभावित होती है.
जिन शरीरो में वात रोग बढ़ेगा उनमे कुछ और चीज़े भी आएँगी जैसे सबसे पहले पुरे दिन सेक्स करने का मन, हस्तमैथुन बहुत ज्यादा, सीलन शरीर पर आना यानि पसीना आने पर या नहाने के बाद शरीर ना सुखना, अकेलेपन में रहना ये सब शनि खराब होने पर होता है.
अब ये ग्रह मकर राशि और कुम्भ राशि को दर्शाता है और तुला में उच्च है, मकर कर्म की राशि है और कुम्भ कर्म फल की, यानी कर्म और फल पर इसका सीधा सीधा असर पड़ता है या ये कह लीजिये शनि की प्लेसमेंट को समझना के शनि किस नक्षत्र, भाव, राशि में है बहुत जरूरी है क्यूंकि कर्म तो करना ही है शनि को जानकार और उसके अनुसार यदि कर्म करते है तो कर्म, कर्मफल की ब्लॉकेज खुल सकती है और जीवन संतुलन भी पाया जा सकता है.
अब बात आती है के कुछ लोग कहते है के हनुमानजी की कृपा से शनि देव नुकसान नहीं पहुंचते, लेकिन हनुमानजी शब्द का मतलब समझना जरूरी है. हनुमान यानी मान का हनन जिसके अंदर कोई मै नहीं अहम की कोई भावना नहीं यानी वही बात लगन कण्ट्रोल में है.
प्रक्टिकली ज्योतिष में शनि का संबंध हमारे पिछले कर्मो से देखा जाता है क्यूंकि हमने कोई तो कर्म किये होंगे जिनका भुगतान हमें इस जन्म में करना होगा, वो शनि की कंडीशन से हमें भोगने ही पड़ते है, हमारे पास्ट कर्मा जिससे आगे का भविष्य सही होगा.
तो जिस भाव में शनि देव विराजमान है वंहा से संबंधित चुनोतियो को स्वीकार करना ही शनि देव से आगे बढ़ने का वरदान माँगना है.
अब बात करते है शनि की दृस्टियो की, इनकी तीन दृष्टि मानी गयी है तीसरी, सांतवी और दशम. देखिये तीसरी दृष्टि कामभाव को दर्शाती है, कैसे, कालपुरुष की कुंडली में तीसरा भाव मिथुन राशि मैथुन भाव को दर्शाता है, सप्तम काम, और दशम कर्म, इसलिए जंहा बैठा है वंहा तीसरे भाव सांतवे भाव और दसंवे भाव को हिलायेगा, अब मनुष्य स्वभाव से ही अत्यधिक कामुक और काम कर्मठ होगा इसलिए इन दृष्टियों को बुरा मान लिया लेकिन बुरा फल जब ही होगा जब शनि देव की प्लेसमेंट को खराब किया जाए.
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