16 जनवरी को वाघा बॉर्डर पर पहुंचे सब कुछ अच्छा चल रहा था, शाम को डेली होने वाली ceremony चल रही थी, दूर से पाकिस्तान की दीवार दिख रही थी वहाँ की तरफ बैठे लोग भी. इतनी पास थे फिर भी बहुत ज्यादा दूर अचानक ऊपर की तरफ जब मैंने देखा कुछ पक्षी मंडराते हुए उस तरफ जा रहे थे मै उन्हें दूर तक देखता ही रहा, सच मे पहली बार इंसान होने का दुःख हुआ. यही सोचने में दिन निकल गया के इंसान होके क्या पा रहा हूँ क्या खो डाला. ऐसा ही हमारे साथ जिंदगी में होता है हम अपनी सरहदें खुद ही बना लेते हैं सोचने का एक निश्चित दायरा बना लेते है, एक महान धर्म में पैदा हुआ हूँ लेकिन धर्म के चश्मे से बाहर निकले बिना आध्यात्मिक तरक्की होनी मुश्किल है. एक निश्चित सीमा से बाहर निकले बिना काम नहीं बनने वाला, ये वो पक्षी सीखा के निकल गए मेरे को. ये मेरे धर्म का है, ये मेरे को क्या देगा, इससे भविष्य में क्या फायदा है, ये मेरा कौन लगा, मैं कुछ हूँ मेरा मान सम्मान ?? सीमाएं छोटी होती जा रही है.
ocean of vastu shastra and astrology