मै प्रतीक गुप्ता आज एक नया सूत्र लेकर आया हु, आज हम बात करेंगे राहु-केतु ग्रह के ऊपर. राहु-केतु एक रहस्मयी ग्रह है, राहु और केतु के बारे जैसा हम जानते के ये एक ही असुर जिसका नाम स्वर्भानु था उसके ही रूप है, असुर ने चुपके से अमृत का सेवन कर लिया था लेकिन विष्णु जी ने सुदर्शन चक्र से स्वर्भानु का सर काट दिया जिससे दो टुकड़े हो गए एक टुकड़ा जो सर था वो राहु बना और धड़ केतु बना.
मत्स्य पुराण में राहु - केतु का जिक्र मिलता है. खैर अब हम आगे बढ़ते है के सिंपल तरीके से केतु को कैसे समझे। देखिये ऐसा समझिये के केतु एक इंसान है जिसका सर नहीं यानी वो देख नहीं सकता। सुन नहीं सकता, सूंघ नहीं सकता। और इसके उलट राहु है जो सुन सकता है देखा सकता, बुद्धि लड़ा सकता है. लेकिन टिक नहीं सकता क्यूंकि रीढ़ नहीं है. यानी जुगाड़ तो लेकिन टिकाव नहीं है और केतु के पास जुगाड़ नहीं है सिर्फ शांति है.,
अब राहु को देखे तो इन्द्रियों की शक्ति है तो सबसे ज्यादा ज्ञान या समझ लीजिये जिस भाव में राहु स्थित है वंहा का सबसे ज्यादा तजुर्बा राहु के पास है लेकिन वंहा पर स्टेबिलिटी नहीं आएगी यानी उस भाव से संबंधित चीज़ो में किसी एक में टिकाव नहीं रहेगा।
केतु एक अँधा ग्रह, जिसके पास सिर्फ अंतर्मन है, और भरपूर अँधेरा है, अंतर्मुखी है. जो सिर्फ अपनी अवचेतन मन की सुन सकता है इसलिए केतु intuition का ग्रह भी माना जाता है मोक्ष का ग्रह माना जाता है. लेकिन एक ऐसा व्यक्ति जिसका सर न हो वो भौतिक सुख कैसे भोगे लेकिन अध्यतम उससे ज्यादा कोई नहीं जान सकता।
जो हमारी गर्दन होती है उसके पीछे एक पीनियल ग्लैंड होता है जिससे रीढ़ की हड्डी दिमाग से जुड़ती है और फिर दिमाग काम करता है. यानी राहु को ऊर्जा केतु से मिलती है और दिमाग इकठ्ठी हुई सूचनाओं को मन तक पहुंचा देता है यानी राहु से केतु कार्य कर रहा है.. तो सुदर्शन चक्र से जो विष्णु ने गर्दन काटी वो इशारा करती है के गर्दन पुरे शरीर का बैलेंस बनाये रखती है.
अब जिस व्यक्ति का सर न हो उसकी ख्वाहिश होंगी के वो भौतिक सुख भोगे, इसलिए केतु कुंडली में जंहा बैठेगा उस भाव से संबंधित उसकी बहुत सारी इच्छाएं रहेंगी जैसे 4 में है शांति चाहेगा, 7 में है अच्छा रिलेशन चाहेगा। लेकिन उसे उन भावो से संबंधित विषयो के गूढ़ रहस्य वो जन्मजात जानता होगा, जैसे 7 केतु वाला रिलेशन कैसे चलाते है वो बता देगा।
अब राहु जैसे व्यक्ति टिकाव चाहेगा, भटक चूका झूलते झूलते। तो जंहा राहु बैठेगा उसकी इच्छा होगी के उस भाव में टिकाव आ जाए, हालाँकि उसे एक्सपीरियंस बहुत होगा। तो राहु जिधर बैठे हम कहते है इसे इस चीज़ का खूब पता होगा. लेकिन इच्छा केतु वाली होगी.
केतु आँख नहीं है तो गड्डे तो पता नहीं चलेगा, कंही देख नहीं सकता तो धोखा और केतु साथ चलते है, जैसे नुमेरोलोग्य में बोलते हैना के 7 अंक वालो को जिंदगी में धोखा बहुत मिलता है, और 4 अंक वाले बहुत तेज़ और समझदार होते है लेकिन फिर भी दुखी।
इनमे से एक भी ग्रह सही किया जाये तो दूसरा अपने सही होता है. वैसे प्राणायाम या अनुलोम विलोम इसका सबसे अच्छा इलाज है. नहीं तो पार्क में घूम लिया कीजिये.
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