वास्तु शास्त्र घर, भवन अथवा मन्दिर निर्मान करने का प्राचीन भारतीय विज्ञान है जिसे आधुनिक समय के विज्ञान आर्किटेक्चर का प्राचीन स्वरुप माना जा सकता है। इसका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है साथ ही अथर्वववेद में वास्तु का एक अध्याय लिखा गया है. ये परम्परागत भारतीय स्थापत्य कला का एक शास्त्र है. एक शहर से लेकर एक छोटे से घर को कैसे बनाया जाए ये वास्तु शास्त्र का प्रमुख अंग है.
वास्तु शास्त्र की परिभाषा - definition of vastu shastra
अगर सिंपल से शब्दों में समझे तो हमारी धरती या कहे हम लोग हर वक़्त हज़ारो तरह की उर्जाओ से घिरे रहते है इनमे से कुछ प्रमुख ऊर्जाओं को अगर हम समझे तो बहुत सारी ऊर्जा है.
ऊर्जा और वास्तु शास्त्र - vastu shastra and energies
सबसे पहले सौर ऊर्जा जो की अपने आप में बहुत बड़ी ऊर्जा है और इसके रूप बहुत सारे होते है जैसे सुबह के समय ये प्राण है लेकिन सूर्य के ढलते समय ये अल्ट्रा वायलेट जिसे पराबैंगनी भी बोलते है वो हो जाती है जो की जहर जैसा असर देती है. इसके अलावा उर्जाओ की बात करे चंद्र ऊर्जा जो की सीधा मन के ऊपर असर डालती है यहाँ तक की समुन्द्र की लहरों तक को हिला डालती है ज्वर भाटा इसका उदाहरण है. ये मात्र दो तरह की उर्जाओ की मैंने बात की है.
इसके बाद ग्रह नक्षत्र की ऊर्जा जिसे ज्योतिष बहुत अच्छे से देखता है, उल्का पिंड, सूर्य ग्रहण चंद्र ग्रहण जिनसे जन मानस पर असर पड़ता है ये सब जानते है. ये सब आकाशीय ऊर्जा है जिसे कॉस्मिक ऊर्जा बोला जाता है. इसके बाद यूनिवर्सल ऊर्जा जिसे ब्रह्मांडीय ऊर्जा भी कहते है जिसमे एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति,रंग, आकार,जीव-जंतु, सुख-दुःख, मौसम को देखकर समझकर क्या भाव देता है या मन में लाता है ये भी एक ऊर्जा है.
तीसरी ऊर्जा रूप है माँ धरती का, गुरुत्वाकर्षण शक्ति और पृथ्वी से निकलने वाली अन्य उर्जाये जो की धातु, जल स्त्रोत, खनन या अन्य कारणों से हमे मिलती है.
इन तीनो ऊर्जाओं के समावेश और इनके साथ किसी तरह जीना है ताकि हम पर अच्छा ही प्रभाव रहे ये वास्तु हमे सीखाता है और इससे संबंधित ग्रंथ या बुक्स को वास्तु आधारित शास्त्र कहते है. जो वास्तु करता है या ये समझ लीजिये जो वास्तु आचार्य होता है उसे वास्तुशास्त्री कहते है.
यह हिंदू वास्तुकला में लागू किया जाता है, हिंदू मंदिरों के लिये और वाहनों सहित, बर्तन, फर्नीचर, मूर्तिकला, चित्रों, आदि।
उत्तर भारत में विश्वकर्मा जी को प्रमुख वास्तुकार के रूप में माना जाता है जबकि दक्षिण भारत में वास्तु का नींव परंपरागत महान साधु मायन को जिम्मेदार माना जाता है.
what is compass in vastu shastra
सबसे पहले दिक्सूचक का आविष्कार चीन के हान राजवंश ने किया था। यह एक बड़ी चम्मच-जैसी चुम्बकीय वस्तु थी जो काँसे की तस्तरी पर मैग्नेटाइट अयस्क को बिठा कर बनाई गई थी। दिक्सूचक का प्राथमिक कार्य एक निर्देश दिशा की ओर संकेत करना है, जिससे अन्य दिशाएँ ज्ञात की जाती हैं। ज्योतिर्विदों और पर्यवेक्षकों के लिए सामान्य निर्देश दिशा दक्षिण है एवं अन्य व्यक्तियों के लिए निर्देश दिशा उत्तर है।
compass का उपयोग वास्तु शास्त्र में दिशा निर्धारण में किया जाता है. इसके द्वारा हमें उत्तर जो की 0 डिग्री पर होता है उसका पता चलता है. जिससे हम बाकी दिशाओ के बारे पता लगा पाते है.
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