वास्तु शास्त्र के अनुसार ईशान कोण यानी के नार्थईस्ट (उत्तरपूर्व) में मंदिर बनाना अच्छा रहता है, क्या ये सच में अच्छा होता है, या कुछ नुक्सान भी दे सकता है ? आइये जानते है किन परिस्थितियों में ईशान कोण का मंदिर अच्छा होता है और कब नहीं बनाना चाहिए.
मंदिर घर में सबके ही बना होता है ऐसा माना जाता है के मंदिर से मानसिक संतुलन सही रहता है. बृहस्पति देव मंदिर के कारक माने जाते है, साथ ही ishaan kon भी jupiter की दिशा होती है. इसलिए यहाँ मंदिर बनाने से बृहस्पति ग्रह मजबूत होता है और घर में शुभता बढ़ती है.
ग्रहों का एक सीधा सा उसूल है दोस्ती और दुश्मनी, बृहस्पति ग्रह शुक्र से दुश्मनी रखता है जब भी हम घर के ईशान में बृहस्पति स्थापित करते है शुक्र ग्रह के फलों में कमी आ जाती है.
अब यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शुक्र बलि है या योगकारक है या किसी का profession शुक्र ग्रह से जुड़ा है तब हमे इस दिशा के मंदिर से बचना चाहिए ऐसी स्थिति में पूर्व दिशा में मंदिर का निर्माण करना उचित रहता है.
अगर कुंडली से भी बात करें तो ईशान बृहस्पति 4TH घर का माना जाता है जहां बृहस्पति आने से शुक्र अच्छे असर नाकाम हो जाता है.
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