वास्तु शास्त्र एक प्राचीन ग्रन्थ है जिसका मुख्य संबंध जीवन जीने के तरीके से है. वास शब्द रहने से जुड़ा है और तू शब्द नियम से जुड़ा है. वास्तु का एक मुख्य ग्रंथ समरांगण सूत्रधार के अनुसार एक वास्तु शास्त्री यानी जो वास्तु शास्त्र की प्रैक्टिस करता है वो व्यक्ति जभी वास्तु को जान सकता है जब वो वास्तु में खोना सीख जाए. ये इतना गहरा विज्ञानं है जो मात्र प्रॉपर्टी के नक़्शे से जुड़ा हुआ नहीं है इसमें बहुत छोटी छोटी चीज़ो का ध्यान रखा गया है.
जैसे ज्योतिष, त्रिकोणमिति, ज्यामिति और यंहा तक की ह्यूमन बेहेवियर तक का वर्णन वास्तु ग्रंथो में देखने को मिलता है. तो एक वास्तु की प्रैक्टिस करने वाला व्यक्ति नेचुरल रूप से अन्य विषयों में पारंगत अपने आप ही हो जाता है.
जैसे एक छोटी सी चीज़ बताता हूँ राहु काल, इसका मुख्य संबंध ज्योतिष से है लेकिन वास्तु शास्त्र में बहुत शुरुआत में ही इसे समझ दिया जाता है के किसी दिन यानी किस वार को किस दिशा में दोष होगा। यदि क्लाइंट आपको किसी वार को बुलाये तो आपको पता हो के क्या दोष है ऐसा वास्तु ग्रंथो में पहले ही लिखा गया जिसका बेस राहु काल था.
इस तरह से वास्तु विद्या काम करती है और इन्ही से संबंधित सरल सूत्र हम वास्तु के अपने इस कोर्स में समझेंगे। असल में परेशानी क्या आती है के थ्योरी तो पूरी पढ़ी गयी लेकिन प्रैक्टिकल रूप से हमें वास्तु का ज्ञान उतना नहीं हो पाता। जब हम वास्तु करने जाते है तो किस स्तर पर परेशानी है ये जानना पड़ता है.
क्या नक़्शे की वजह से परेशानी है
क्या प्लेसमेंट की वजह से परेशानी है
क्या आपके जातक के अनुसार प्रॉपर्टी नहीं बनी हुई
क्या बाहर के माहौल की वजह से परेशानी है
क्या ज्योतिष इसमें रोल कर रहा है ये देखना जरूरी है
फिर इसमें हमारे उपाय चलते है.
हम क्या समझेंगे
एक प्रॉपर्टी को एक व्यक्ति की तरह समझने की कोशिश करेंगे
जैसे शरीर में ऑर्गन होते है वैसे ही दिशाए होती है वो समझेंगे
दिशाओं के ऊर्जा स्त्रोत
नोड्स कैसे पकडे यानी डिग्री कैसे पकडे घर की और क्लाइंट की
एक वास्तु शास्त्री बनने की कोशिश करेंगे जिससे घर खुद बात करता हो ना की एक वाले प्रोफेशनल वास्तु कंसलटेंट की जिसका काम सिर्फ पैसे लेकर चले जाना हो.
आपके पांच तत्व पहले ही बता देते है सब कुछ ये पढ़ना सीखेंगे
16 ज़ोन्स, 32 दरवाज़ा के साथ साथ वेद पुराण का भी मत समझेंगे
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