जब धरती घूमती है तो दिशा तो बदल जाती है ऐसे में वास्तु शास्त्र तो अपने आप ही गलत हुआ सर जी, ऐसा ही call आज आ गया. इसका उत्तर उन्हें मैंने फ़ोन पर दे दिया पर सोचा एक अच्छी बात रही आर्टिकल लिखने का आईडिया तो दिया.
पहले बात तो - वास्तु का मतलब है वास+तु, वास करने के नियम, अब वास कहाँ करना है, संसार में, देश में, घर में, अपने मन में। ..इनमे सबसे महत्वपूर्ण है मन में
मन में वास करने के लिए अपने शरीर के पांच तत्व, इन्द्रिय और चक्र को बैलेंस करने का काम भी वास्तु शास्त्र के अंतर्गत ही आता है इसमें दिशा का कोई मतलब नहीं होता. वास्तु एक wide topic है 15 दिन या महीने भर का course नहीं.
इसके बाद घर को लिया जाता है. अब घर को ठीक करना आज के युग में आसान है क्यूंकि अपने अंदर तो change कोई लाना नहीं चाहता, सभी बहुत ज्यादा समझदार है गूढ़ ज्ञानी है ऐसे में घर को ठीक करने का चलन वास्तु शास्त्र का दूसरा नाम ही माना गया. जबकि ग्रंथो में देश और राज्य किसी जातक को अच्छा रहेगा या नहीं इसका वर्णन मिलता है. समरांगण सूत्रधार में भवन जन्म कथा में इद्रियों का वर्णन मिलता है. इस प्रकार सिर्फ प्रॉपर्टी के अलावा व्यक्ति की खुद की प्रकृति भी वास्तु का हिस्सा है.
दूसरी बात - पृथ्वी के घूमने के हिसाब से 3 तरह की वास्तु बताई गई है, जिन्होंने इसे समझा और लिखा वो भी कुछ जानते होंगे पृथ्वी के घूर्णन के बारे में.
1. नित्य वास्तु - डेली पृथ्वी के घूमने के हिसाब से
2. चलित वास्तु - सूर्य के हर महीने अपने राशि बदलने के हिसाब से
3. स्थिर वास्तु - पृथ्वी को एक स्थिर मान कर वास्तु करना
तीनो वास्तु काम में ली जाती है. कुछ लोग सिर्फ और सिर्फ कमियाँ निकालते है करते कुछ नहीं. mostly नित्य और चलित वास्तु प्रॉपर्टी से जुड़े हर तरह के मुहूर्त निकालने के काम आती है, जैसे कंस्ट्रक्शन कैसे करनी है वास्तु पुरुष का मुख किस तरफ है, दरवाज़ा किस तरह लगाए किस महीने में etc.
स्थिर वास्तु construction में यूज़ होती है. जैसे ऊंचाई कितनी हो, दरवाज़े कितने हो, रंग कैसा हो, painting या चित्र कैसे लगाए व् अन्य बाते.
Comments
Post a Comment