
सामुद्रिक शास्त्र की शाखा हस्त विज्ञानं में हाथों के पर्वतों को काफी महत्व दिया गया है. आज बात करते हाथ में गुरु पर्वत की. गुरू पर्वत का स्थान हथेली पर तर्जनी उंगली के ठीक नीचे होता है। जिनकी हथेली पर यह पर्वत अच्छी तरह उभरा होता है उनमें नेतृत्व एवं संगठन के गुण होते है। आइये जानते है गुरु पर्वत की विभिन्न स्थितियों के बारे में
गुरू पर्वत (Mount of Jupiter) - hatheli mai guru parvat
विकसित - उभरा हुआ गुरु पर्वत जिनके हाथ में होता है वे धार्मिक प्रवृति के होते हैं, ये लोगो की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। यह पर्वत उन्नत होने से व्यक्ति न्यायप्रिय होता है और दूसरों के साथ जान बूझ कर गलत काम नहीं करता है। शारीरिक तौर पर उच्च गुरू पर्वत वाले व्यक्ति का शरीर मांसल होता है यानी वे मोट होते हैं।
ज्यादा विकसित - लेकिन यदि यह पर्वत जिनमें बहुत अधिक विकसित होता है यानि बहुत ज्यादा ही उभरा हुआ है तो व्यक्ति स्वार्थी व अहंकारी होते हैं।
ज्यादा विकसित - लेकिन यदि यह पर्वत जिनमें बहुत अधिक विकसित होता है यानि बहुत ज्यादा ही उभरा हुआ है तो व्यक्ति स्वार्थी व अहंकारी होते हैं।
कम विकसित - जिन लोगों के हाथों में यह पर्वत कम विकसित होता है वे शरीर से दुबले पतले होते हैं। अविकसित गुरू के होने से व्यक्ति में संगठन एवं नेतृत्व की क्षमता का अभाव पाया जाता है। ऐसे व्यक्ति मान सम्मान और यश के लिए फंसे रहते है लेकिन मिलता नही है.
सपाट - गुरू पर्वत का स्थान जिस व्यक्ति की हथेली में सपाट होता है वे व्यक्ति गलत लोगों से मित्रता रखते हैं, इनकी विचारधारा नीच किस्म की होती है. इनसे दूर रहना ही ठीक रहता है.
सपाट - गुरू पर्वत का स्थान जिस व्यक्ति की हथेली में सपाट होता है वे व्यक्ति गलत लोगों से मित्रता रखते हैं, इनकी विचारधारा नीच किस्म की होती है. इनसे दूर रहना ही ठीक रहता है.
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