गणेश जी की स्थापना अपने घर के main gate के ऊपर या ईशान कोण में की जा सकती है.
कभी भी गणेश जी को कभी तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए ।
यदि भवन में द्वारवेध हो जिसे हम विधि शूला भी कहते है जिससे वहां रहने वाले लोगो में उच्चटन होता है। घर के द्वार के सामने वृक्ष, मंदिर, स्तंभ या T-point आदि के होने पर द्वारवेध माना जाता है। ऐसे में भवन के मुख्य द्वार पर बाहर की तरफ गणेश की बैठी हुई प्रतिमा लगानी चाहिए किंतु उसका आकार 10-11 अंगुल से अधिक नहीं होना चाहिए।
घर में पूजा के लिए गणेश जी की शयन या बैठी मुद्रा में हो तो अधिक उपयोगी होती है। यदि आपको कला या अन्य शिक्षा के purpose से पूजन करना हो तो नृत्य गणेश की तस्वीर लगानी चाहिए इसके अलावा यदि आपका फर्श का झुकाव दक्षिण की और है तो दक्षिण की दिवार पर अंदर की तरफ एक dancing ganesha की picture लगाये
गणेशजी की मूर्ति का मुख यदि नैर्ऋत्य मुखी हो तो लाभ देती है, वायव्य मुखी होने पर सम्पति की हानि , ईशान मुखी हो तो ध्यान ना लगना और आग्नेय मुखी होने पर भुखमरी तक ला सकती है।
पूजा के लिए गणेश जी की एक ही प्रतिमा होनी चाहिए । घर में गणेश जी की ज्यादा मूर्तियाँ या पिक्चर नुकसान देती है
यदि भवन में द्वारवेध हो जिसे हम विधि शूला भी कहते है जिससे वहां रहने वाले लोगो में उच्चटन होता है। घर के द्वार के सामने वृक्ष, मंदिर, स्तंभ या T-point आदि के होने पर द्वारवेध माना जाता है। ऐसे में भवन के मुख्य द्वार पर बाहर की तरफ गणेश की बैठी हुई प्रतिमा लगानी चाहिए किंतु उसका आकार 10-11 अंगुल से अधिक नहीं होना चाहिए।
घर में पूजा के लिए गणेश जी की शयन या बैठी मुद्रा में हो तो अधिक उपयोगी होती है। यदि आपको कला या अन्य शिक्षा के purpose से पूजन करना हो तो नृत्य गणेश की तस्वीर लगानी चाहिए इसके अलावा यदि आपका फर्श का झुकाव दक्षिण की और है तो दक्षिण की दिवार पर अंदर की तरफ एक dancing ganesha की picture लगाये
गणेशजी की मूर्ति का मुख यदि नैर्ऋत्य मुखी हो तो लाभ देती है, वायव्य मुखी होने पर सम्पति की हानि , ईशान मुखी हो तो ध्यान ना लगना और आग्नेय मुखी होने पर भुखमरी तक ला सकती है।
पूजा के लिए गणेश जी की एक ही प्रतिमा होनी चाहिए । घर में गणेश जी की ज्यादा मूर्तियाँ या पिक्चर नुकसान देती है
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