वास्तुशास्त्र में वायव्य दिशा
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वायव्य दिशा उत्तर पश्चिम के मध्य को कहा जाता है.वायु देव इस दिशा के स्वामी हैं.ग्रहो में इस दिशा का प्रतिनिधित्व केतु गृह करता है. वास्तु शास्त्र में इस दिशा को वायु का इलाका माना जाता है.
वायु दिशा होने के कारण इस कोने में सबसे काम वास्तु नियम लागु होते है, आप इस दिशा में टॉयलेट, किचन, बैडरूम, बाथरूम का निर्माण करवा सकते है.
वायु तत्त्व ज्यादा होने के कारण इस दिशा जो भी आता है उसमे वायु तत्त्व बढ़ जाता है इसिलिए इस कोने में बड़ी उम्र के लोगो को सोने से मना किया जाता है.
इस कोने में जवान व शादी के लायक बच्चे सोय तो अच्छा रहेगा।
वायु का इलाका होने से यदि इस दिशा में दुकानदार अपना बिक्री वाला सामान रखता है तो बिक्री बढ़ती है.
वास्तु की दृष्टि से यह दिशा दोष मुक्त होने पर व्यक्ति के सम्बन्धों में प्रगाढ़ता आती है.लोगों से सहयोग एवं प्रेम और आदर सम्मान प्राप्त होता है.इसके विपरीत वास्तु दोष होने पर मान सम्मान में कमी आती है.लोगो से अच्छे सम्बन्ध नहीं रहते और अदालती मामलों में भी उलझना पड़ता है.
घर में ब्रह्मस्थान का महत्व
कैसे करें ईशानमुखी प्लाट पर निर्माण
वास्तु शास्त्र में वृक्षों का महत्व
पश्चिम दिशा का वास्तु
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वायव्य दिशा उत्तर पश्चिम के मध्य को कहा जाता है.वायु देव इस दिशा के स्वामी हैं.ग्रहो में इस दिशा का प्रतिनिधित्व केतु गृह करता है. वास्तु शास्त्र में इस दिशा को वायु का इलाका माना जाता है.
वायु दिशा होने के कारण इस कोने में सबसे काम वास्तु नियम लागु होते है, आप इस दिशा में टॉयलेट, किचन, बैडरूम, बाथरूम का निर्माण करवा सकते है.
वायु तत्त्व ज्यादा होने के कारण इस दिशा जो भी आता है उसमे वायु तत्त्व बढ़ जाता है इसिलिए इस कोने में बड़ी उम्र के लोगो को सोने से मना किया जाता है.
इस कोने में जवान व शादी के लायक बच्चे सोय तो अच्छा रहेगा।
वायु का इलाका होने से यदि इस दिशा में दुकानदार अपना बिक्री वाला सामान रखता है तो बिक्री बढ़ती है.
वास्तु की दृष्टि से यह दिशा दोष मुक्त होने पर व्यक्ति के सम्बन्धों में प्रगाढ़ता आती है.लोगों से सहयोग एवं प्रेम और आदर सम्मान प्राप्त होता है.इसके विपरीत वास्तु दोष होने पर मान सम्मान में कमी आती है.लोगो से अच्छे सम्बन्ध नहीं रहते और अदालती मामलों में भी उलझना पड़ता है.
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